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कोटद्वार गढ़वाल का प्रवेशद्वार (Kotdwar A Gateway Of Garhwal)


 

कोटद्वार गढ़वाल का प्रवेशद्वार (Kotdwar A Gateway Of Garhwal)

 REPORTER & OWNER REPRESENTIVE  SHAHRUMA  -PARVEEN FORCE-TODAY NEWS KOTDWARA U.K

कोटद्वार पौड़ी गढ़वाल एक छोटा शहर होने के बाबजूद इसका भारतीय इतिहास के पन्नों में विशेष महत्वपूर्ण स्थान है। कोटद्वार को मौर्य साम्राज्य द्वारा महान अशोक के अधीन माना गया था, उसके बाद यहाँ कत्यूरी राजवंश और फिर गढ़वाल के पंवार वंश का शासन था। फिर गोरखाओं ने कोटद्वार पर लगभग 12 वर्षों तक शासन किया,कोटद्वार का पुराना नगर "खोह" और यह गिवइन शोत नदियों के संगम पर स्थित था। इसका पुराना नाम खोहद्वार था, जिसका अर्थ है खोह नदी का प्रवेश द्वार: कोटद्वार खोह नदी के तट पर स्थित है इसलिए इसका नाम बाद में कोटद्वार रखा गया। कोटद्वार उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है। इसे ' गढ़वाल का प्रवेशद्वार' भी कहा जाता है।

कण्वाश्रम  : कोटद्वार से 14 किलोमीटर दूर मालिनी नदी के किनारे स्थित कनव ऋषि आश्रम ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह माना जाता है कि जब ऋषि विश्वामित्र ने यहां ध्यान लगाया तब देवताओं के राजा इंद्र ने उनके ध्यान को भंग करने के लिए स्वर्ग की अप्सरा मेनका को भेजा। 

 कोटद्वार तक कैसे पहुंचे

जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, 110 किमी की दूरी पर स्थित कोटद्वार का निकटतम हवाई अड्डा है। कोटद्वार भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेलवे द्वारा जुड़ा हुआ है। यह भारत का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन कोटद्वार में स्थित है। यहाँ से दिल्ली, नजीबाबाद आदि जगह के लिए ट्रेनो का आवागमन रहता है। दिल्ली, नजीबाबाद, देहरादून  हरिद्वार व उत्तरप्रदेश से कोटद्वार के लिए बसें आसानी से उपलब्ध रहते हैं। कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग 119 के साथ जुड़ा हुआ है। 

कोटद्वार में देश का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन है, जिसे 1890 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था। गढ़वाल क्षेत्र की पहाड़ियों के प्रवेश द्वार के रूप में कोटद्वार भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेलवे द्वारा जुड़ा हुआ है। यह स्टेशन भारतीय रेलवे के उत्तरी रेलवे क्षेत्र के मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत आता है।

1897 रेलवे लाइन बन जाने के बाद नगर धीरे धीरे दाईं ओर बढ़ने लगा और खोह नदी की पश्चिमी दिशा की ओर विकसित होने लगा। कोटद्वार पूर्वी गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख परिवहन और थोक व्यापार केंद्र रहा है। 1909 में कोटद्वार को नगर का दर्जा दिया गया था तथा उसी वर्ष हुई प्रथम जनगणना में नगर की जनसंख्या 1029 थी।

 यहाँ प्रमुख पर्यटक स्थल सिद्धबली धाम मंदिर, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, कण्वाश्रम, दुर्गा देवी मंदिर, सेंट जोसेफ चर्च, ताड़केश्वर मंदिर आदि है।

 कोटद्वार की भौगोलिक स्थिति कुछ ऎसी ख़ास है कि गंगा तट पर स्थित महान तीर्थ स्थल हरिद्वार और ऋषिकेश यहाँ से लगभग 70 से 90 किमी की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित हैं. विश्व विख्यात कोर्बेट नेशनल पार्क यहाँ से भी 150 किमी की दूरी पर पूर्व की ओर स्थित है. यहाँ से लगभग 40 किमी उत्तर पूर्व में लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स का रेजिमेंटल सेन्टर है. यहाँ से लगभग 85 किमी पूर्व में कालागढ़ में रामगंगा नदी पर एक बाँध और बिजलीघर बना है.

 कण्वाश्रम ना तो कोई धार्मिक स्थान है और ना ही कोई दैविक स्थल है, अपितु ये वो भूमि है जो कि इस महान राष्ट भारत की आत्मा है और उस से जन्मी उत्सर्जन का प्रतीक है। इस स्थान को उसकी भव्य उॅचाइयों तक पहॅुचाना, इस देश के प्रत्येक नागरिक का सपना तथा कर्तव्य होना चाहिए। विश्व के अनेकों राष्ट मे ऐसे स्मारक है जो कि उनकी राष्टीय एकता का प्रतीक है और उस राष्ट के हर नागरिको को प्रेरित करता है। जन मानस तथा प्रतिष्ठित व्यक्ती इन स्मारक स्थलो मे जा, अपना शीश झुका उस राष्ट के निर्माताओं को श्रद्धांजलि देते है। पर हमारे राष्ट मे ऐसा कोई स्मारक नही है जो इस राष्ट के निर्माता “चक्रवर्ती सम्राट भरत” को समर्पित हो। यदपि बहुत समय बीत गया पर अभी भी, देर से सही, पर ऐसे कदम उठाये जा सकते है कि आगे आने वाली पीडियां को ये संदेश जाये कि वे भी इस विशाल भू भाग को एकीकृत रखे जैसा कि चक्रवती सम्राठ भरत ने किया था । तकि हम सब इस देश को आदर से भारतवर्ष कह कर सम्बोधन करते रहे। 

हिम से ढकी हिमालय पर्वत की अन्नत पर्वत श्रेर्णियों के दक्षिण मे समान्तर श्रेर्णियों मे स्तिथ है शिवालिक पर्वत श्रेणियां (शिव की जटायें) जो कि साल के पेडो से बने घने जंगल से ढकी हुई है। दून घाटी तथा विश्व विख्यात जिम कोरबेट पार्क भी इन पर्वत श्रेणियों मे स्तिथ है। घने जंगलो से ढके इन पर्वतो के मध्य मे बहती है पवित्र मालिनी नदी। आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व इस नदी के तट पर स्तिथ था कण्व ऋषि का विश्व विख्यात आश्रम। इसे “कण्वाश्रम या कण्व का आश्रम” भी कहते थे। ये आज की परिभाषा मे एक विश्वविद्दालय या शिक्षा का आध्यात्मिक केन्द्र था जहां दस सहष्त्र विद्धार्थी ऋषी कण्व की देख रेख मे शिक्षा ग्रहण करते थे।

मालिनी के तट पर स्थित "कण्वआश्रम" या कण्व के आश्रम” के गौरवमय इतिहास से हमारे देश का क्या सम्बन्ध हो सकता है ये जानकारी वर्तमान समय मे विद्धवानों, बुद्धिजीवी को या आप सब मे से कुछ को हो जो भारतीय इतिहास या संस्कृति मे रूचि रखते हो तक ही सीमित हो । पर इस बात का हम सब को ज्ञान है कि जिस महान देश के हम नागरिक है उस देश को "भारत" या "भारतवर्ष" के नाम से जाना जाता है । क्यों ? शायद ये भी हमारे संज्ञान मे हो कि इस देश का नाम उस चक्रवर्ती सम्राट "भरत" के नाम से पड़ा जिसने इस विशाल भूखण्ड को एक राष्ट् के रूप मे एकीकृत कर इस पर कई वर्षों तक राज्य किया । इस महान राज्य की उत्पत्ति तथा उस के हज़ारों वर्षों के स्वर्णिम युग से आज तक बहुत समय बीत चुका है । मालिनी नदी पूर्ववत की तरह आज भी प्रवाहमान है पर नहीं है उसके तट पर वो विश्व विख्यात आध्यात्मिक तथा ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र, एक आदर्श महा विद्यालय जहॉ पर दस सहस्र विद्यार्थी कुलपति कण्व के अधीन शिक्षा ग्रहण करते थे। 

 मालिनि नदी के तटो के दोनो ओर उगे घनघोर जंगलो के बीच मे स्तिथ कण्वाश्रम मे इस बहादुर बालक ने अपना बचपन जगली जानवर तथा शेरो के बच्चो से खेलते हुए बिताया। बडे होकर इस बालक को चक्रवर्ती सम्राठ भरत के नाम से जाना गया जिसने इस विशाल भूखण्ड पर कई वर्षो तक राज्य किया। समय की विभीषिका ने कण्वआश्रम के भौतिक अस्तित्व को तो समाप्त कर दिया पर अपनी लेखनी से हज़ारों वर्ष बाद भी कण्वआश्रम के सजीव चित्रण से महाकवि कालीदास, जिन्हें उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों का सम्पूर्ण ज्ञान था, ने अपनी कृति " अभिज्ञान शाकुन्तलम् " मे कण्वआश्रम, मालिनी तथा उससे जुड़े समस्त पात्रों को अमर बना दिया।.    

  REPORTER & OWNER REPRESENTIVE  SHAHRUMA  -PARVEEN FORCE-TODAY NEWS KOTDWARA

 

परफ्यूम को कैसे इस्तेमाल  करे ? और कौन सा परफ्यूम है  बेहतर।।

परफ्यूम खरीदते समय सिर्फ इसकी फ्रेगरेंस पर ध्यान देते हैं। लेकिन परफ्यूम को बेहतर समझने के लिए ये भी जानें कि इसे कहां स्प्रे करना चाहिए। सस्ते या मंहगे परफ्यूम में से आपके लिए क्या सही है आदि। यहां बताई जा रहे कुछ टिप्स आपके लिए सही परफ्यूम का चयन करने में मदद करेंगे।

1. ऑ दे टॉयलेट या ऑ दे पारफुम : फ्रेगरेंस बॉटल्स पर ऑ दे टॉयलेट, ऑ दे पारफुम, ऑ दे कलोन या बॉडी मिस्ट लिखा दिखता है। वह इसलिए कि हर फ्रेगरेंस बॉडी पर एक निश्चित समय तक टिकती है।जैसे-

- पारफुम की फ्रेगरेंस 6-8 घंटों तक बनी रहती है।

- ऑ दे पारफुम 5 घंटे तक रहता है।

- ऑ दे टॉयलेट 2-3 घंटे तक रहता है।

- ऑ दे कलोन 2 घंटे तक रहता है।

- बॉडी मिस्ट एक घंटे से भी कम समय तक महकता है।

2. कहां स्प्रे करना चाहिए : वॉर्म स्किन या बॉडी का वह हिस्सा जो सबसे ज्यादा मूव करता है। पल्स पॉइंट्स पर सबसे पहले स्प्रे करना चाहिए या गले के निचले हिस्से पर, कान के पीछे, चेस्ट पर, घुटने के पीछे और इनर एल्बो पर स्प्रे करना चाहिए। इन जगहों पर स्प्रे करने से परफ्यूम लंबे समय तक महकता रहेगा। कपड़ों पर परफ्यूम नहीं लगाना चाहिए वरना दाग बन सकते हैं।

3. लंबे समय तक कैसे टिकेगा परफ्यूम : अगर परफ्यूम लगाना है तो नहाने के बाद बिना खुशबू का मॉइश्चराइजर लगाइए। जहां परफ्यूम लगाने वाले हैं वहां पहले पेट्रोलियम जेली लगा सकते हैं, इससे परफ्यूम जल्दी नहीं उड़ेगा।

4. सस्ता या महंगा : सस्ते परफ्यूम लंबे समय तक नहीं टिकते हैं, बहुत जल्दी उड़ जाते हैं। इनमें केवल टॉप नोट्स ही होते हैं, बेस और मिडिल नोट्स गायब रहते हैं। ये आसानी से मिलने वाले एसेंशियल ऑइल्स या सिंथेटिक फ्रेगरेंस से बनाए जाते हैं। हालांकि, महंगे परफ्यूम कई बार केवल ब्रांड और पैकेजिंग की वजह से भी महंगे होते हैं। इसलिए परफ्यूम खरीदने से पहले रिसर्च बेहद जरूरी है।

5. परफ्यूम के तीनों नोट्स हैं जरूरी : केवल पहले नोट के आधार पर ही परफ्यूम नहीं खरीद लेना चाहिए। तीनों नोट्स को जानना बहुत जरूरी है। इसलिए परफ्यूम चुनने में पूरा समय लीजिए। पसंद आने पर पहले छोटी बॉटल लें, क्योंकि परफ्यूम्स की शेल्फ लाइफ कम होती है। धूप और गर्मी में इन्हें स्टोर नहीं करना चाहिए।


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