जिनकी अमेज़न प्राइम वीडियोज पर बनी बायोपिक रिलीज हुई
- जानते हैं पहले 'ह्यूमन कंप्यूटर' की गणितीय प्रतिभा को
- बात 1930 के दशक की है, जब शकुंतला देवी की प्रतिभा सामने आई। उन्होंने बड़े-बड़े नंबरों का क्यूब रूट चंद सेकंड्स में बताकर सनसनी फैला दी। आखिर, कोई लड़की बिना स्कूल जाए, इतनी आसानी से और तुरंत हल कैसे बता सकती है।
- उनकी गणितीय प्रतिभा का राज जानने के लिए 1988 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया- बार्कले में साइकोलॉजिस्ट आर्थर जेनसन ने जांच की।
- इस दौरान शकुंतला देवी ने 95,443,993 (जवाब 457) का क्यूब रूट 2 सेकंड में बता दिया। इसी तरह 204,336,469 (जवाब 589) का क्यूब रूट सिर्फ 5 सेकंड में और 2,373,927,704 (जवाब 1334) का क्यूब रूट सिर्फ 10 सेकंड में बता दिया।
- बार्कले के टेस्ट में 455,762,531,836,562,695,930,666,032,734,375 (जवाब 46,295) का 27वां रूट उन्होंने सिर्फ 40 सेकंड में बताया। इसका मतलब है कि 46,295 को जब 27 बार गुणा करेंगे तो यह 33 अंकों वाला नंबर आएगा।
- इतना ही नहीं, 1982 में बड़े-बड़े अंकों को गुणा कर हल बताने की क्षमता गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हुई थी। इम्पीरियल कॉलेज में 18 जून, 1980 को उन्होंने 13 अंकों वाले दो अंकों का गुणा किया था।
- यह नंबर थे- 7,686,369,774,870 × 2,465,099,745,779 और उन्होंने महज 28 सेकंड्स में जवाब दिया 18,947,668,177,995,426,462,773,730, वह भी सटीक।
- पिछली सदी के किसी भी तारीख को वर्ष के साथ बताओ, वह बता देती थी कि उस दिन वार क्या था। उदाहरण के लिए यदि आप उन्हें कह रहे हैं कि 18 अक्टूबर 1978 को क्या दिन था, तो वह झट से बता देती कि बुधवार।
- बार्कले टेस्ट में यह भी सामने आया कि उनके जवाब इतनी तेज गति से आते कि आपको स्टॉप वॉच शुरू करने और रोकने का वक्त भी नहीं मिलता। उनका औसत रेस्पांस टाइम होता था महज एक सेकंड।
आखिर उन्होंने यह सब सीखा कैसे?
- शकुंतला के पिता एक सर्कस परफॉर्मर थे। तीन साल की थी, तब से ही माता-पिता के साथ घूमने लगी थी। ताश के खेल दिखाते-दिखाते उसने अपनी कैल्कुलेट करने की क्षमता को विकसित किया।
- एक बार उसने सटीक क्यूब रूट निकालना शुरू किया तो उन्होंने अपनी स्किल को प्रस्तुत करना शुरू किया। टीनेजर बनने तक तो उन्होंने पूरी दुनिया में घूम-घूमकर शो करना भी शुरू कर दिया था। वह भी कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में।
आखिर, वह इतने कैल्कुलेशंस कैसे कर लेती थी?
- 1988 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-बार्कले में टेस्ट की एक रिपोर्ट में ही ज्यादातर सवालों के जवाब मिलते हैं। साइकोलॉजिस्ट जेनसन ने 1990 में जर्नल इंटेलिजेंस में इसके नतीजे प्रकाशित किए थे।
- संक्षेप में कहें तो जेनसन को भी कोई ठोस जवाब नहीं मिला था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था- "शकुंतला देवी की क्षमता दुर्लभ है। लाखों-हजारों में एक की। जो भी टेस्ट किए गए, कोई नहीं बता पाया कि उनकी सवाल हल करने की काबिलियत क्या है।'
- जेनसन ने लिखा कि देवी का नंबरों को देखने का नजरिया ही अलग है। वह आम लोगों जैसा नहीं है। वह जटिल और बड़े-बड़े नंबरों को भी किसी तरह सरल बना लेती और चंद सेकंड्स में उनका हल कर देती।
तो क्या अपनी ट्रिक्स के बारे में देवी ने खुद कुछ लिखा है?
- हां। शकुंतला देवी के लेखन में उनकी अद्वितीय क्षमता झलकती है। "फिगरिंगः द जॉय ऑफ मैथमेटिक्स' में उन्होंने गुणा करने का तरीका बताया है। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह पिछली सदी के किसी तारीख पर पड़ने वाले वार की सटीक गणना की जाती है।
- लेकिन इन प्रक्रियाओं पर कई-कई पेज भरे हुए हैं। इसके बाद भी शकुंतला देवी चंद सेकंड्स में जवाब दे देती थी। लिहाजा, कुछ तो खास था उनकी गणितीय प्रतिभा में। जैसा कि जेनसन ने बताया कि शकुंतला देवी का नंबरों को देखने का नजरिया ही अलग था।
और क्या खूबियां थी शकुंतला देवी की?
- शकुंतला देवी ने बाद में अपनी गणितीय प्रतिभा के आधार पर एस्ट्रोलॉजी में हाथ आजमाया और कई मायनों में सफल भी रही। 1980 में इंदिरा गांधी को मेडक संसदीय सीट पर चुनौती दे डाली। हालांकि महज 6,514 वोट हासिल कर सकीं।
- बायोपिक में कहानी सुनाई गई है शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा बनर्जी के नजरिये से। हाल ही में उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि उनकी मां को लगता था कि मनुष्य के दिमाग में किसी भी कंप्यूटर से कहीं ज्यादा क्षमता है। इसे निखारने की आवश्यकता है।
शकुंतला देवी की बेटी का क्या कहना है मां के बारे में?
- शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा अपने पति अजय अभय कुमार के साथ लंदन में रहती है। उन्होंने ही डायरेक्टर अनु मेनन को बायोपिक बनाने के लिए महत्वपूर्ण इनपुट्स दिए। उनका कहना था कि जीनियस आम तौर पर बोरिंग होते हैं, लेकिन मेरी मां ऐसी नहीं थी।
- अजय कुमार ने कहा, वह बिंदास रहती थी। पार्टी करती थी। उनके हजारों दोस्त थे। उन्हें बात करना अच्छा लगता था। वह डांस भी कर लेती थी। भले ही उनकी तुलना मैडम क्यूरी से भी हुई है, लेकिन वह जरा-भी बोरिंग नहीं थी।
एस्ट्रोलॉजर के तौर पर कैसे प्रसिद्ध हो गई?
- अनुपमा बताती हैं कि उठने से पहले मिलने ही उसकी मां से मिलने लोग आ जाते थे। वह सबको जानती थी। उनके राज जानती थी। उनका इंट्यूशन जबरदस्त था। बेंगलुरू में एक पार्टी में अजय से मिलीं और जान गई कि मेरी उससे शादी हो जाएगी।
- कुमार का कहना है कि फरवरी 2013 में उसने कहा कि वह कभी लंदन नहीं आ सकेगी और अपनी बेटी को कभी नहीं देख सकेगी। वैसे तो हम खुद बेंगलुरू जाने वाले थे जून में। लेकिन वह कहती थी कि तब तक वह रहेंगी नहीं और अप्रैल में उनका निधन हो गया।
- कुमार ने दावा किया कि उनकी सास ने 2013 में अपनी मौत से पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि नरेंद्र मोदी एक न एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। उनकी मौत के एक साल बाद मोदी देश के पीएम बन भी गए।
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