हेरोइन का नशा
ग्राम हेरोइन लगभग 3000 रु की बिकती है नशा करने वाल इंसान दिन में कम से कम एक दो ग्राम का सेवन तो कर ही लेता है कश्मीर में इस समय ड्रग एडिक्शन ने एक खतरनाक रुख ले लिया है।
1993 में कश्मीर के एक मशहूर साइकैट्रिस्ट, मुश्ताक मरकूब और उनके साथी केएस दत्ता ने अपनी एक किताब में बताया था कि कश्मीर में 2.11 लाख लोग अलग-अलग तरीके का नशे करते हैं। इन लोगों में से ज्यादातर पुरुष हैं और अक्सर ये लोग चरस का नशा करते हैं। 2014 में यूनाइटेड नेशंस ड्रग कंट्रोल प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने एक सर्वे में बताया था कि कश्मीर में नशा करने वालों की संख्या केवल 70,000 है, जिसमें से 4000 औरतें हैं और बाकी पुरुष हैं। इस सर्वे को कश्मीर में जानकारों ने नज़र अंदाज़ किया था, क्योंकि वे जानते हैं कि आंकड़ा इससे कहीं ज़्यादा बड़ा है।
जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी में से 4.9% लोग नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। यानी कुल 6 लाख लोग जम्मू-कश्मीर में नशा करते हैं और यह भारत में पांचवें स्थान पर है।
पहले लोग चरस, अफीम, गांजा, फुक्की या करेक्शन फ्लूइड और बूट पॉलिश का नशा करते थे। अब जो लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं, वो ज्यादातर हेरोइन के एडिक्ट होते हैं।
श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में नशा करने वाले लोगों के आने से भी साबित होती है। यहां 2016-17 में 490 ऐसे लोग आए थे, जो नशे की लत के शिकार थे। डॉक्टर बताते हैं कि इस अस्पताल में नशे के जो लोग आते हैं, उनकी उम्र 10 से 30 साल के बीच होती है और इनमें से 80 से 90 फीसदी लोग हेरोइन की लत वाले होते हैं।
हेरोइन इतनी तेज़ी से कश्मीर के युवाओं को अपनी तरफ क्यों खींच रहा है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मध्य और निचले वर्ग के जो लोग हेरोइन की चपेट में हैं, वे ड्रग सप्लायर के सबसे बड़े हथियार हैं। इन्हीं की मदद से ज्यादातर हेरोइन इधर से उधर की जाती है। अब सवाल यह है कि कश्मीर में इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच यह जहर आता कहां से है? 30 जून 2019 को अटारी बॉर्डर पर एक ट्रक से 532 किलो हेरोइन, जो लगभग 2700 करोड़ की थी, पकड़ी गई। यह हेरोइन नमक से भरे ट्रक के नीचे थी।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि अगर हम देखें तो यह सारा हेरोइन अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते यहां पहुंचाया जाता है। कश्मीर में कहीं हेरोइन नहीं बनती है, सब बाहर से ही आती है। हालांकि, ड्रग कश्मीर पहुंचता कैसे है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
पिछले साल कश्मीर में एक ड्रग पॉलिसी तैयार की गई थी, लेकिन अभी तक इस पर कोई खास काम नहीं हुआ है। इस साल मई में 100 पुलिस कर्मियों की एक एंटी नारकोटिक्स स्पेशल स्क्वॉड ज़रूर बनाया गया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि यह स्क्वॉड कितना कारगर होता है।
-------------------End
कृष्ण हमसे कह रहे हैं- मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, हैंडवॉश जैसे हथियार उठाओ और कोरोना के खिलाफ युद्ध के लिए खड़े हो जाओ-
अभी तो लड़ाई शुरू भी नहीं हुई थी और आपने हथियार डाल दिए? यह बात नई पीढ़ी एक न एक दिन हमें कह सकती है, जब भविष्य में कोरोना के किस्से चला करेंगे। कुरूक्षेत्र में अर्जुन ने ऐसा ही किया था। युद्ध आरंभ होने से पहले उनके जैसा योद्धा, समर्थ व्यक्ति हथियार उठाने से इनकार कर देता है।
अर्जुन की उस हरकत पर लिखा गया है- ‘विसृज्य सशरम् चापम् शोकसंविग्रमानस:।। अर्थात धनुष-बाण त्यागकर अर्जुन रथ के पिछले हिस्से में बैठ गए। कहने लगे- मैं यह युद्ध नहीं लडूंगा’। थोड़ा चिंतन कीजिए कहीं हम भी ऐसा ही तो नहीं कर रहे हैं। आज महामारी के इस दौर में मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, हैंडवॉश ये सब हमारे हथियार हैं और कई लोग इन्हें फेंक चुके हैं। अर्जुन का सौभाग्य था कि उनके साथ कृष्ण खड़े थे। हमारे साथ भी हैं, पर उस रूप में नहीं जिसमें कि अर्जुन के साथ थे। कृष्ण हमारे भीतर हैं जो हमारा आत्मविश्वास है, दूरदर्शिता है, भरोसा है।
हमें इस भरोसे को जगाना होगा। कहीं न कहीं हमारे भीतर के कृष्ण हमसे वही कह रहे हैं जो अर्जुन से कहा था- ‘पार्थ क्लैब्यं मा स्म गम:’। हे अर्जुन, नपुंसकता को मत प्राप्त होओ। धनुष उठाओ और युद्ध के लिए खड़े हो जाओ..। श्रीकृष्ण के इस संवाद को सुनिए, ध्यान में रखिए और सावधान हो जाइए। विजय ही हम मनुष्यों का आभूषण है।
EmoticonEmoticon