उत्तराखंड मै जीत की 5 वजहें-सरकार बदलने वाली परंपरा टूटी,
चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष अकील अहमद ने बयान दिया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो प्रदेश में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाएंगे। इसे BJP ने चुनावी मुद्दा बनाया। बाद में हरीश रावत को सफाई देनी पड़ी।
कभी हरीश रावत के करीबी रहे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने चुनाव से ठीक पहले BJP जॉइन कर ली। इससे कांग्रेस को ब्राह्मण वोटों का बड़ा झटका लगा। उत्तराखंड में इस वर्ग का लगभग 19 फीसदी वोट है। पिछले चुनाव में किशोर से उनकी टिहरी की परंपरागत सीट छीन कर देहरादून के सहसपुर सीट से लड़ाया गया। यहां से वह हार गए, लेकिन इस बार किशोर उपाध्याय टिहरी से चुनाव जीत गए।
1-2017 के चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिलने के बावजूद पांच साल में BJP ने तीन CM बदले। सबसे पहले केंद्रीय नेतृत्व के भरोसेमंद रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाया गया, लेकिन उनकी कार्यशैली से कार्यकर्ताओं और विधायकों में नाराजगी बढ़ती चली गई। चार साल बाद त्रिवेंद्र को हटाकर तीरथ सिंह रावत को CM बनाया गया। तीरथ की बयानबाजियों ने पार्टी को कई बार असहज स्थिति में ला खड़ा किया। ऐसा लगा कि पार्टी चुनाव में 20 सीटों तक सिमट कर रह जाएगी। इंटर्नल सर्वे और संगठन के फीडबैक के
आधार पर BJP ने तीसरी बार रिस्क लिया। दूसरी बार विधायक बने युवा नेता पुष्कर सिंह धामी को चुनाव से आठ माह पहले CM बनाया गया। धामी ने सक्रियता दिखाई, जिससे BJP चुनाव जीत गई। पर सीएम धामी खुद चुनाव हार गए।2- उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में मोदी फैक्टर का असर कायम रहा। इन जिलों में धार्मिक भावनाओं का खासा महत्व है। BJP ने इसे भुनाने में कसर नहीं छोड़ी। PM मोदी खुद कई बार उत्तराखंड में चुनावी कैंपेन करने के लिए आए। बताया जा रहा है कि मोदी के चुनावी कैंपेन से राज्य की आठ से दस सीटों पर सीधे असर पड़ा। यही वजह रही कि आज उत्तराखंड में परंपरा को तोड़कर BJP ने सत्ता में वापसी की।
3- केदारनाथ के कायाकल्प का जोरशोर से प्रचार किया गया। चारधाम को जोड़ने वाले हाइवे को 4 लेन करने, चारधाम के विकास को हाईलाइट किया गया। PM मोदी ने कई बार केदारनाथ धाम का दौरा किया। नेपाल और चीन सीमा तक सड़कों के चौड़ीकरण, ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन के निर्माण से विकास का खाका खींचा गया।
4- राज्य के मैदानी जिलों ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून का कुछ हिस्सा किसान आंदोलन से खासा प्रभावित रहा। आंदोलन के दौरान हिंसक झड़पें भी हुईं थीं। साथ ही महंगाई ने आग में घी का काम किया। इससे बीजेपी को कोई नुकसान नहीं हुआ।
5- कांग्रेस में गुटबाजी हावी रही। पहले हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह के बीच कोल्डवॉर चला। उनकी प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से भी रावत की नहीं बनी। CM चेहरा घोषित न किए जाने से भी रावत नाराज थे। मामला दिल्ली दरबार पहुंचा तो राहुल गांधी ने हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया, लेकिन उन्हें पंजाब की तरह CM चेहरा घोषित नहीं किया। माना जा रहा है कि इससे कांग्रेस को आठ से दस सीटों का नुकसान हुआ।
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