भारतीय मूल की समृद्धि कालिया ने दुबई में इतिहास रच दिया। समृद्धि ने एक छोटे से बॉक्स में 3 मिनट में योग के 100 पोज देकर नया कीर्तिमान बनाया। समृद्धि का ये तीसरा योग टाइटल है, जिसमें से 2 टाइटल समृद्धि ने 1 महीने के अंदर ही अपने नाम किए हैं।
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम
खलीज टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से न्यूज एजेंसी ने रविवार को बताया कि 11 साल की समृद्धि का नाम गुरुवार को 'फास्टेस्ट हंड्रेड योगा पोस्चर्स परफॉर्म्ड इन रिस्ट्रिक्टेड एरिया' के लिए गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। समृद्धि ने ये चैलेंज 3 मिनट और 18 सेकंड में दुबई की प्रसिद्ध इमारत बुर्ज खलीफा के व्यूइंग डेक पर पूरा किया।
एक हफ्ते पहले ही 40 योग पोश्चर कर बनाया था रिकॉर्ड
एक छोटे से बॉक्स के अंदर एक मिनट में करीब 40 योग आसन करने का रिकॉर्ड बनाने के कुछ हफ्तों बाद ही समृद्धि ने ये वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। समृद्धि ने दूसरा वर्ल्ड रिकॉर्ड अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर बनाया था, जो हर साल 21 जून को मनाया जाता है।
-कोरोना UPDATE--NEWS
देश में संक्रमितों का आंकड़ा 11 लाख के पार हो गया। अब तक 11 लाख 18 हजार 17 मरीज हो चुके हैं। रविवार को रिकॉर्ड 40 हजार 253 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। एक दिन में अब तक का ये आंकड़ा सबसे ज्यादा है। इसके पहले शनिवार को ही सबसे ज्यादा 37 हजार 407 नए केस मिले थे।
हालांकि, इस बीच राहत की खबर है कि देश में ठीक होने वाले मरीजों का आंकड़ा भी 7 लाख के पार हो गया। अब तक 7 लाख 339 लोग बीमारी से रिकवर होकर घर जा चुके हैं। रविवार को 22 हजार 734 लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हुए।
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- -गृहमंत्री अमित शाह के 2.16 करोड़ तो रक्षामंत्री राजनाथ के 1.78 करोड़ फॉलोअर
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सुखी जीवन का सूत्र-
एक शिष्य ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा कि सभी लोग सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन साधु-संतों के लिए इतने कठोर नियम क्यों बनाए गए हैं?
रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। उनके जीवन के कई ऐसे प्रेरक प्रसंग हैं, जिनमें सुखी जीवन के सूत्र बताए गए हैं। इन सूत्रों से हम जीवन में सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं। यहां जानिए उनका एक ऐसा ही प्रेरक प्रसंग...
प्रचलित प्रसंग के अनुसार एक दिन रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य से पूछा कि सभी लोग तो जीवन में हर तरह की सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन साधु-संतों के लिए इतने कठोर नियम क्यों बनाए गए हैं? संन्यासी भी इसी समाज का हिस्सा है, वह भी इंसान ही है तो साधु-संत इन सुखों का उपभोग क्यों नहीं कर सकते हैं?
परमहंसजी ने शिष्य की बात सुनी और कहा कि सामान्य लोग तो समाज में रहकर अनुशासन के साथ सभी काम करते हैं, लेकिन संन्यासी कितना भी तपस्वी क्यों न हो, उसे स्त्रियों से दूर रहना चाहिए, धन का संग्रह नहीं करना चाहिए, सुख-सुविधा पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, संत को क्रोध से भी बचना चाहिए।
एक संत ही त्याग की शिक्षा देता है। संन्यासी अपने जीवन, ज्ञान और कर्म से समाज को श्रेष्ठ और धर्म के अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा देता है। संन्यासी अपने जीवन से समाज को देता है कि मनुष्य की इच्छाएं अनंत हैं, ये कभी पूरी नहीं हो सकती हैं, इसीलिए किसी चीज का मोह नहीं रखना चाहिए, त्याग की भावना रखेंगे तो कभी दुखी नहीं होना पड़ेगा। भगवान की भक्ति में मन लगा रहेगा। जीवन में सुख-शांति तभी मिल सकती है जब व्यक्ति किसी से मोह न रखें और कोई वस्तु खोने पर दुखी न हो। इसीलिए हर व्यक्ति के मन में त्याग की भावना भी होनी चाहिए। ये सारी बातें साधु-संत ही समाज को बताते हैं
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