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हिमालय में मिली कोरोना की संजीवनी-बुरांश का पौधा

 18 JAN 2022 FORCE TODAY NEWS

हिमालय में मिली कोरोना की संजीवनी-बुरांश का पौधा-

भारत में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में मास्क पहनने, सामाजिक दूरी बरकरार रखने और वैक्सीन लगवाने को ही संक्रमण से बचने का उपाय माना जा रहा है, लेकिन जल्द ही कोरोना की एक ऐसी दवा आ सकती है, जो कोरोना मरीजों के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होगी।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) के रिसर्चर्स ने हिमालय की पहाड़ियों में मिलने वाले एक पौधे में कोरोना का इलाज ढूंढ निकाला है। आइए जानते हैं ये पौधा हमें कोरोना से बचाने में कितना कारगर साबित हो सकता है।

 वैज्ञानिकों के अनुसार, बुरांश का पौधा (रोडोडेंड्रन अर्बोरियम) कोरोना वायरस से लड़ने में हमारी मदद कर सकता है। इसके फूलों की पंखुड़ियों में मौजूद फाइटोकैमिकल नामक पदार्थ कोरोना को मल्टीप्लाई होने से रोकता है। इस केमिकल में कुछ ऐसे एंटी वायरल गुण होते हैं, जिसके चलते वायरस इनके सामने टिक नहीं पाता।

बता दें कि बुरांश का पौधा ज्यादातर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर में पाया जाता है। स्थानीय लोग इसकी पंखुड़ियों के रस को अपना स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए पहले से ही इस्तेमाल करते आ रहे हैं।

शरीर में कोरोना संक्रमण को फैलने से कैसे रोकता है ये पौधा?

इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के डॉक्टर रंजन नंदा कहते हैं कि बुरांश के फाइटोकैमिकल शरीर में दो तरह से काम करते हैं। सबसे पहले ये कोरोना में मिलने वाले एक ऐसे एंजाइम से जुड़ जाते हैं, जो वायरस को अपना डुप्लीकेट बनाने में मदद करता है। इसके अलावा, ये हमारे शरीर में मिलने वाले ACE-2 एंजाइम से भी जुड़ जाते हैं। ACE-2 एंजाइम के जरिए ही वायरस हमारी बॉडी में प्रवेश करता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, फाइटोकैमिकल की इस जुड़ने की प्रक्रिया के कारण कोरोना वायरस हमारी बॉडी के सेल्स (कोशिकाओं) को इन्फेक्ट नहीं कर पाता और संक्रमण का खतरा टल जाता है। मंडी IIT के प्रोफेसर डॉ. श्याम कुमार मसकपल्ली कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है बुरांश पौधे से कोरोना का इलाज संभव हो पाएगा। उनकी टीम हिमालय में मिलने वाले और भी औषधीय पौधों में कोरोना का इलाज ढूंढ रही है।

 बुरांश की पंखुड़ियों के दूसरे फायदे

बुरांश के फूलों से बने शरबत को हृदय रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। ये पंखुड़ियां जुकाम, मांसपेशियों में दर्द, सिर दर्द और बुखार को आराम देने के काम आती हैं। स्थानीय लोग इसका उपयोग स्क्वाश और जैम बनाने में करते हैं। साथ ही, इसकी चटनी को आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पसंद किया जाता है।

उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है बुरांश, बेहद मान्यता है इसकी
बुरांश का पौधा समुद्र तल से 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। ये उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है और इसकी वहां के स्थानीय समुदाय में बेहद मान्यता है। मार्च-अप्रैल के महीनों में इस पर लाल रंग के फूल खिलते हैं। बुरांश के फूलों को आमतौर पर ब्रास, बुरस या बराह के फूल के नाम से भी जाना जाता है। ये भारत के अलावा पाकिस्तान, चीन, नेपाल, थाईलैंड और श्रीलंका में भी पाया जाता है। श्रीलंका में इसके पाए जाने को लोग रामायण में हनुमान जी के हिमालय से वहां संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर जाने से जोड़ते हैं।

 ओमिक्रॉन की उल्टी गिनती शुरू

 कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन पर पहले से मौजूद कोविड-19 वैक्सीन के असर को लेकर भले ही एक्सपर्ट्स में अलग-अलग तरह की राय है, लेकिन अब खास तौर पर इसी वैरिएंट को निशाना बनाने वाली वैक्सीन भी जल्द आ रही है। खास बात यह है कि ओमिक्रॉन को हराने वाली यह नई वैरिएंट-स्पेसिफिक वैक्सीन भारत में ही बनी है। पुणे की जिनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने इस नई तरह की वैक्सीन को तैयार किया है और जल्द ही इसके ह्यूमन ट्रायल शुरू होने जा रहे हैं।

 2 से 14 साल के बच्चों को भी लगेगी कोरोना वैक्सीन,

 देश में 15-17 साल के बच्चों के वैक्सीनेशन की शुरुआत के बाद अब 12-14 साल के बच्चों को भी कोरोना वैक्सीन लगाई जाएगी। कोविड-19 पर बने नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन (NTAGI) के चीफ डॉ. एन के अरोड़ा के अनुसार मार्च से इन बच्चों को वैक्सीन लगेगी। फिलहाल देश में कोरोना की तीसरी लहर थमने का नाम नहीं ले रही है। बीते 24 घंटे में 2 लाख 58 हजार 89 नए कोरोना संक्रमित मिले हैं।


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